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दुःख कर्म का(Sadness of Karma)||AllBestNews||

दुःख कर्म का(Sadness of Karma) दोहा: कर्म होत जैसा कछु , तैसा ही फल होय | तैसा ही सुख दुःख को , भोग करत नर सोय ||

Thursday, January 17, 2019

/ by All Best News
Sadness of Karma
दुःख कर्म का(Sadness of Karma)

दोहा: कर्म होत जैसा कछु , तैसा ही फल होय |
          तैसा ही सुख दुःख को , भोग करत नर सोय ||

अर्थ: पूर्व जन्म में जैसे कर्म होता है/उसी के अनुसार इस जन्म में फल प्राप्त करके मानव सुख दुःख भोग करता है/

कर्म कितने प्रकार के होते है?( How many types of karma are)

कर्म तीन प्रकार के होते है(Karma is of three types)
1 (संचित) अर्थात पूर्व जन्म के कर्म जिनका फल भोग नहीं किया गया/
2 (प्रारब्ध) वह जिसका कर्म भोगा जा रहा है/
3 (क्रियमाण) अर्थात शरीर द्वारा जैसे कर्म करे उसी के अनुसार सुख भोगे/

दुःख कर्म   

                                             सत + तम
तम  दोहा:  एक रूप भोजन-बसन , एक रूप की चाह |
                           पर चलते ही चल पड़े , अपनी अपनी राह ||
अर्थ:   तम अपनी ओर खीचता है  , सत को अपनी ओर खीचना पड़ता है/

तमो का कारण?( Reason of tam)
                                                                        मनोरथ पूरा न होना या अधिक धन की चाह/

Ex.  नारद बाबा को तामस आया मनोरथ के कारण/
           धुंधकारी को तामस आया अधिक धन की चाह के कारण/

सत अर्थ: (प्रभु के नाम का जप) या रूप का चिंतन करना पड़ता है नाम (का जप) रूप (का चिंतन) लीला (कथा श्रावण) धाम की इच्छा मत करो कर्मानुसार मिलता ही है/


द्रष्टांत के रूप में कहानी(Ex. Story)

Sadness of Karma
एक गांव में जमींदार और उसके एक मजदूर की साथ ही मौत हुई। दोनों यमलोक पहुंचे।
धर्मराज ने जमींदार से कहा: आज से तुम मजदूर की सेवा करोगे। 
मजदूर से कहा: अब तुम कोई काम नहीं करोगे, आराम से यहां रहोगे।
जमींदार परेशान हो गया। पृथ्वी पर तो मजदूर जमींदार की सेवा करता था, पर अब उल्टा होने वाला था।
जमींदार ने कहा: भगवन, आप ने मुझे यह सजा क्यों दी?
मैं तो भगवान का परम भक्त हूं। प्रतिदिन मंदिर जाता था। देसी घी से भगवान की आरती करता था और बहुमूल्य चीजें दान करता था। धर्म के अन्य आयोजन भी मैं करता ही रहता था।
धर्मराज ने मजदूर से पूछा: तुम क्या करते थे पृथ्वी पर?
मजदूर ने कहा: भगवन, मैं गरीब मजदूर था। दिन भर जमींदार के खेत में मेहनत मजदूरी करता था। मजदूरी में उनके यहां से जितना मिलता था, उसी में परिवार के साथ गुजारा करता था। मोह माया से दूर जब समय मिलता था तब भगवान को याद कर लेता था। भगवान से कभी कुछ मांगा नहीं।
गरीबी के कारण प्रतिदिन मंदिर में आरती तो नहीं कर पाता था, लेकिन जब घर में तेल होता तब मंदिर में आरती करता था और आरती के बाद दीपक को अंधेरी गली में रख देता था ताकि अंधेरे में आने-जाने वाले लोगों को प्रकाश मिले।
धर्मराज ने जमींदार से कहा: आपने सुन ली न मजदूर की बात?
भगवान धन-दौलत और अहंकार से खुश नहीं होते। भगवान मेहनत और ईमानदारी से कमाने वाले व्यक्ति से प्रसन्न रहते हैं। यह मजदूर तुम्हारे खेतों में काम करके खुश रहता था और सच्चे मन से भगवान की आराधना करता था। जबकि तुम आराधना ज्यादा धन पाने के लिए करते थे। तुम मजदूरों से ज्यादा काम लेकर कम मजदूरी देते थे। तुम्हारे इन्हीं कामों के कारण तुम्हें मजदूर का नौकर बनाया गया है ताकि तुम भी एक नौकर के दुख-दर्द को समझ सको।


Writed By (Ram Shakar Yadav)
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  1. Hello Guys दोस्तों आप लोगो ये बाते कैसी लगी कमेंट में बताइए गा जरुर और इसमे कोई गलती होI'm Sorry लेकिन कमेंट में बताइए गा की क्या गलती है जिससे हम उसमे सुधार कर सके आज्ञा से(राम शंकर यादव).....धन्यवाद

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